तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर। बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥
तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन
इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥
अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं, मनुष्य को हमेशा मीठा ही
बोलना चाहिए । मीठा अर्थात सरल, स्पष्ट, धीमा और नम्रता से बात करनी चाहिए । जो मनुष्य इस तरह से बात करता है वह
जल्दी ही सामने वाले को या किसी को भी अपने वश में कर लेता है । वश में करने का
अर्थात वह उसके मन में अपनी सकारात्मक पहचान बना लेता है । उदाहरण के लिए देखें
यदि हमें किसी से मिलना है जिसको हम नहीं जानते है । उससे मिलने के बाद यदि हम
उससे अच्छे से और सलीके से बात करें तो वह हमसे प्रसन्न होकर ही जाएगा और यह भी हो
सकता है कि वह हमसे दोबारा मिलने का प्रयत्न करे । इसी के विपरीत यदि हम उससे
गुस्से से या अच्छे से बात न करें तो वह हमसे दोबारा बात नहीं करना चाहेगा या
चाहेगी । इससे हमारे व्यक्तित्व को ही नुकसान होगा और उसके मन में हमारे लिए नकारात्मक
सोच उत्पन्न होगी । इसलिए तुलसीदास जी
कहते है कि हम जब भी किसी से बात करे तो नम्र और अच्छे से बात करें ताकि वह
हमसे खुश होकर ही जाए ।
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