मंत्री, गुरु, वैद्य जौं प्रिय बोलहिं भय आस | राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

   मंत्री, गुरु, वैद्य जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
  राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||


अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की किसी राज्य का मंत्री, किसी बीमार व्यक्ति का वैद्य (डॉक्टर) और गुरुजन यदि अपना वास्तविक काम न करके हमें हमेशा खुश करने की ही चेष्टा करते हैं या वे अपने मूल कार्य से विमुख हो रहे है तो आम जनता और हमारे लिए नुकसान देय है । मंत्री को राज्य की सेवा करनी चाहिए, वैद्य को अपना उपचार सही ढंग से करना चाहिए और गुरु द्वारा शिष्यो को सही मार्ग दिखाना चाहिए । यदि वे अपने इस मूल कार्य को ईमानदारी से नहीं करते हैं तो राज्य, वह बीमार व्यक्ति एवं शिष्य जल्दी ही नाश हो सकते हैं । तुलसी कहते हैं कि इसलिए जिसका जो कार्य है वही करना चाहिए वो भी पूरी ईमानदारी के साथ ताकि अन्य लोग जो उन पर निर्भर हैं वे शीघ्र ही सही होकर या सही रास्ते पर चल सके ।   

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